أيها السجين، من الذي كبّلك
ترجمة: عبد المتين وسيم
"أيها السجين!
من الذي كبّلك بشديد القيد؟"
بصلب الرباط.
وكنت أحسب سأتفوق أنا
كل إنسان في العالم؛
فاختزنت في مخبأ كنوزي
ثراء الملك.
ولما غلبني النوم
تمددت فوق سرير سيدي؛
ولما استيقظت وجدت نفسي
سجينا في مخبأ كنوزي.
من
الذي صنع هذا القيد القوي الصلب؟"
هذا القيد بعنايتي.
وظننت أن قواي
تشد العالم بشديد الأسر؛
فيكون الجميع مطيع العبد
وأبقى أنا بكامل الحرية.
فصنعت ليلا ونهارا
قيد الحديد هذا،
وسويته بنار لاهبة
متأججة
وبضربات لاذعة قاسية لا تحصى.
ولما انتهى صنعه وتماسكت
حلقاته
وصار مكتمل الصلب؛
وجدت نفسي
قد كبلنى رباط قيدي.
বন্দী,
তোরে কে বেঁধেছে
রবীন্দ্রনাথ
ঠাকুর
“বন্দী, তোরে কে বেঁধেছে
এত কঠিন ক’রে।”
প্রভু আমায় বেঁধেছে যে
বজ্রকঠিন ডোরে।
মনে ছিল সবার চেয়ে
আমিই হব বড়ো,
রাজার কড়ি করেছিলেম
নিজের ঘরে জড়ো।
ঘুম লাগিতে শুয়েছিলেম
প্রভুর শয্যা পেতে,
জেগে দেখি বাঁধা আছি
আপন ভাণ্ডারেতে।
“বন্দী ওগো, কে গড়েছে
বজ্রবাঁধনখানি।”
আপ্নি
আমি গড়েছিলেম
বহু যতন মানি।
ভেবেছিলেম আমার প্রতাপ
করবে জগৎ গ্রাস,
আমি রব একলা স্বাধীন,
সবাই হবে দাস।
তাই গড়েছি রজনীদিন
লোহার শিকলখানা—
কত আগুন কত আঘাত
নাইকো তার ঠিকানা।
গড়া যখন শেষ হয়েছে
কঠিন সুকঠোর,
দেখি আমায় বন্দী করে
আমারি এই ডোর।
বোলপুর
৯ বৈশাখ ১৩১৩
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